श्री राम अवतार त्यागी जी द्वारा लिखी गयी यह कविता जिसे हमने हिंदी की पुस्तक में पढ़ा था और इसका भाव यह है, कि कवि तन मन शरीर व आत्मा सब देश को समर्पित करने के बाद भी देश के लिए कुछ और करना चाहता है! दूसरी ओर देश का नेतृत्व और व्यवस्था देखी जहाँ 60 वर्षों से लूटने के बाद भी तृप्ति नहीं होती, अपने स्विस खाते भरने हेतु देश को खोखला करने में संकोच नहीं! सत्य- असत्य, असली नकली के इस भेद को समझ जायेंगे जिस दिन, विश्व के क्षितिज पर चमकेंगे, विश्वगुरु होंगे फिर उस दिन!...तिलक संपादक
-------------------------------------
मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है, मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजा कर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
मांज दो तलवार, लाओ न देरी
बाँध दो कस कर क़मर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
तोड़ता हूँ मोह का बन्धन, क्षमा दो
गांव मेरे, द्वार, घर, आंगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बायें हाथ में ध्वज को थमा दो
यह सुमन लो, यह चमन लो
नीड़ का त्रण त्रण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !
देश केवल भूमि का एक टुकड़ा, एक आरामगाह, बाज़ार समझते हैं जो, कितना ही लुटा दो उन पर संतुष्ट नहीं होते। जानते हैं शोर मचाकर और लूट सकते हैं। कर्तव्य नहीं है कुछ उनका, अधिकारों का मचा शोर हैं। कर्तव्य हिन्दू के अधिकार दूसरों के-यह आज़ादी कैसी व किस की? वोटबैंक राजनीति, देश की सुरक्षा से खिलवाड़, किसी के हित में नहीं, स्वार्थवश राष्ट्रद्रोह है। (निस्संकोच टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट संपर्कसूत्र - https://t.me/ydmstm - तिलक रेलन वरि पत्रकार, युगदर्पण 👑 9971065525,
अच्छा लगा पढ़कर. आभार पढ़वाने का.
ReplyDeletebahut hi badhiya kavita hai..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना की है त्यागी जी ने, इस गीत कयो पढ़ कर सुन कर वाकई समर्पित होने कयो जी चाहता है ...
ReplyDelete