आ.सूचना,

: : : सभी कानूनी विवादों के लिये क्षेत्राधिकार Delhi होगा। हमारे ब्लाग पर प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक/संपादक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक/संपादक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। अनैतिक,अश्लील, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी, धर्म/सम्प्रदाय विरोधी, मिथ्या, तथा असंवैधानिक कोई भी सामग्री यदि प्रकाशित हो जाती है। यदि कोई भी पाठक कोई भी आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं व तत्काल संचालक/संपादक मंडल को सूचित करें तो वह तुंरत प्रभाव से हटा दी जाएगी एवम लेखक सदस्यता भी समाप्त करदी जाएगी।: : "देश की मिटटी" पर आपका हार्दिक स्वागत है.इस ब्लॉग पर अपनी प्रकाशित और अप्रकाशित रचनाये भेज सकते हैं,रचनाएँ स्वरचित है इसका सत्यापन कर ई-मेल yugdarpanh@gmail.com पर भेजें ,ये तो आपका ही साझा मंच है.धन्यवाद: :

बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Thursday, July 22, 2010

चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) - शत शत नमन!



सभी देश भक्तों को हमारे प्रेरणा पुंज पत. चंदर शेखर आजाद के 96 वे जन्म दिवस की शुभकामनाएं
चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अत्यंत सम्मानित और लोकप्रिय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भगत सिंह के अनन्यतम साथियों में से थे। असहयोग आंदोलन समाप्‍त होने के बाद चंद्रशेखर आजाद की विचारधारा में परिवर्तन आ गया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्‍तान सोशल रिपब्लिकन आर्मी में सम्मिलित हो गए। उन्‍होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे काकोरी काण्ड तथा सांडर्स-वध को पूर्णता दी। 

जन्म तथा प्रारंभिक जीवन

चंद्रशेखर आजाद का जन्‍म मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले भावरा गाँव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ। उस समय भावरा अलीराजपुर राज्य की एक तहसील थी। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी संवत 1956 के अकाल के समय अपने निवास उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव को छोडकर पहले अलीराजपुर राज्य में रहे और फिर भावरा में बस गए। यहीं चंद्रशेखर का जन्म हुआ। वे अपने माता पिता की पाँचवीं और अंतिम संतान थे। उनके भाई बहन दीर्घायु नहीं हुए। वे ही अपने माता पिता की एकमात्र संतान बच रहे। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। पितामह मूलतः कानपुर जिले के राउत मसबानपुर के निकट भॉती ग्राम के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण तिवारी वंश के थे। 

संस्कारों की धरोहर

चन्द्रशेखर आजाद ने अपने स्वभाव के बहुत से गुण अपने पिता पं0 सीताराम तिवारी से प्राप्त किए। तिवारी जी साहसी, स्वाभिमानी, हठी और वचन के पक्के थे। वे न दूसरों से अन्याय कर सकते थे और न स्वयं अन्याय सहन कर सकते थे। भावरा में उन्हें एक सरकारी बगीचे में चौकीदारी का काम मिला। भूखे भले ही बैठे रहें पर बगीचे से एक भी फल तोड़कर न तो स्वयं खाते थे और न ही किसी को खाने देते थे। एक बार तहसीलदार ने बगीचे से फल तुड़वा लिए तो तिवारी जी बिना पैसे दिए फल तुड़वाने पर तहसीलदार से झगड़ा करने को तैयार हो गए। इसी जिद में उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। एक बार तिवारी जी की पत्नी पडोसी के यहाँ से नमक माँग लाईं इस पर तिवारी जी ने उन्हें खूब डाँटा और 4 दिन तक सबने बिना नमक के भोजन किया। ईमानदारी और स्वाभिमान के ये गुण आजाद ने अपने पिता से विरासत में सीखे थे।

आजाद का बाल्य-काल

1919 मे हुए जलियां वाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी व्यथित किया 1921 मे जब महात्‍मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया तो उन्होने उसमे सक्रिय योगदान किया। यहीं पर उनका नाम आज़ाद प्रसिद्ध हुआ । इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे bandi हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। सजा देने वाले मजिस्ट्रेट से उनका संवाद कुछ इस तरह रहा -
तुम्हारा नाम ? आज़ाद
पिता का नाम? स्वाधीन
तुम्हारा घर? जेलखाना
मजिस्ट्रेट ने जब 15 बेंत की सजा दी तो अपने नंगे बदन पर लगे हर बेंत के साथ वे चिल्लाते - महात्मा गांधी की जय। बेंत खाने के बाद 3 आने की जो राशि पट्टी आदि के लिए उन्हें दी गई थी, को उन्होंने जेलर के ऊपर वापस फेंका और लहूलुहान होने के बाद भी अपने एक दोस्त डॉक्टर के यहाँ जाकर मरहमपट्टी करवायी।
सत्याग्रह आन्दोलन के मध्य जब फरवरी 1922 में चौराचौरी की घटना को आधार बनाकर गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो भगतसिंह की bhanti आज़ाद का भी काँग्रेस से मोह भंग हो गया और वे 1923 में शचिन्द्र नाथ सान्याल द्वारा उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर बनाए गए दलहिन्दुस्तानी प्रजातात्रिक संघ (एच आर ए) में शामिल हो गए। इस संगठन ने जब गाँवों में अमीर घरों पर डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाया जा सके तो तय किया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का तमंचा छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बाद bhi आज़ाद ने अपने niyam  के कारण उसपर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के 8 सदस्यों, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल शामिल थे, की बड़ी दुर्दशा हुई क्योंकि पूरे गाँव ने उनपर हमला कर दिया था। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का nirnay किया। 1 जनवरी 1925 को दल ने देशभर में अपना बहुचर्चित पर्चा द रिवोल्यूशनरी (क्रांतिकारी) बांटा जिसमें दल की नीतियों का ullekh था। इस parche में रूसी क्रांति की चर्चा मिलती है और इसके लेखक सम्भवतः शचीन्द्रनाथ सान्याल थे।

अंग्रेजों की नजर में

इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया । लेकिन इससे पहले ही अशफ़ाक उल्ला खान ने ऐसी घटनाओं का विरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जाएगा। और ऐसा ही हुआ। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं - रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह तथा राजेन्द्र सिंह  लाहिड़ी को क्रमशः 19 और 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिया। इस मुकदमे के दौरान दल निष्क्रिय रहा और एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह भी शामिल थे लेकिन यह योजना पूरी न हो सकी। 8-9 सितम्बर को दल का पुनर्गठन किया गया जिसका नाम हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एशोसिएसन रखा गया। इसके गठन का ढाँचा भगत सिंह ने तैयार किया था पर इसे आज़ाद का पूर्ण समर्थन प्राप्त था।

चरम सक्रियता

आज़ाद के प्रशंसकों में पंडित मोतीलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन का नाम bhi था। जवाहरलाल नेहरू से आज़ाद की भेंट जो स्वराज भवन में हुई थी उसका ullekh नेहरू ने 'फासीवदी मनोवृत्ति' के रूप में किया है। इसकी कठोर आलोचना मन्मनाथ गुप्त ने अपने लेखन में की है। यद्यपि नेहरू ने आज़ाद को दल के सदस्यों को रूस में समाजवाद के प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए एक हजार रूपये दिये थे जिनमें से 448 रूपये आज़ाद की शहादत के samay उनके वस्त्रों में मिले थे। सम्भवतः सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय तथा यशपाल का रूस जाना तय हुआ था पर 1928-31 के बीच शहादत का ऐसा kram चला कि दल लगभग बिखर सा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद की इच्छा के विरुद्ध जब भगतसिंह एसेम्बली में बम फेंकने गए तो आज़ाद पर दल ka pura dayitva aa gaya । सांडर्स वध में भी उन्होंने भगत सिंह का साथ दिया और फिर बाद में उन्हें छुड़ाने ka pura prayas भी उन्होंने kiya । आज़ाद ke sukhav के viruddh खिलाफ जाकर यशपाल ने 23 दिसम्बर 1929 को दिल्ली के samip वायसराय की गाड़ी पर बम फेंका तो इससे आज़ाद क्षुब्ध थे क्योंकि इसमें वायसराय तो बच गया था पर कुछ और कर्मचारी मारे गए थे। आज़ाद को 28 मई 1930 को भगवतीचरण वोहरा की बमपरीक्षण में हुई शहादत से भी गहरा आघात लगा था । इसके कारण भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना खटाई में पड़ गई थी। भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू की फाँसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गाँधीजी के पास भेजा जहाँ से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आज़ाद ने अपने बलबूते पर झाँसी और कानपुर में अपने अड्डे बना लिये थे । झाँसी में रुद्रनारायण, सदाशिव मुल्कापुरकर, भगवानदास माहौर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे जबकि कानपुर मे शालिग्राम शुक्ल सक्रिय थे। शालिग्राम शुक्ल को 1 दिसम्बर 1930 को पुलिस ने आज़ाद से एक पार्क में जाते samay शहीद कर दिया था। ve yadi jivit hote to aaj 95 varsh ke hote. unke janam divas ki sabhi desh bhakton ko badhaai.

शहादत

25 फरवरी 1931 से आज़ाद इलाहाबाद में थे और यशपाल रूस भेजे जाने सम्बन्धी योजनाओं को अन्तिम रूप दे रहे थे। 27 फरवरी को जब वे अल्फ्रेड पार्क (जिसका नाम अब आज़ाद पार्क कर दिया गया है) में सुखदेव के साथ किसी चर्चा में व्यस्त थे तो किसी मुखविर की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। इसी मुठभेड़ में आज़ाद शहीद हुए।
आज़ाद की शहादत की सूचना जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने sabhi काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिए उनका अन्तिम संस्कार कर दिया । बाद में शाम के samay उनकी अस्थियाँ लेकर युवकों का एक जुलूस निकला और सभा हुई। सभा को शचिन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीरामबोस की शहादत के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा। सभा को जवाहरलाल नेहरू ने भी सम्बोधित किया। इससे पूर्व 6 फरवरी 1927 को मोतीलाल नेहरू के देहान्त के बाद आज़ाद उनकी शवयात्रा में शामिल हुए थे क्योंकि उनके देहान्त से क्रांतिकारियों ने अपना एक सच्चा हमदर्द खो दिया था।

व्यक्तिगत जीवन

आजाद एक देशभक्त थे। अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से सामना करते samay जब उनकी पिस्तौल में antim गोली बची तो उसको उन्होंने svayam पर चला कर शहादत दी थी। उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिए धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद डेरे के 5 लाख की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाए पर वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि साधु मरणासन्न नहीं था और वे वापस आ गए। रूसी क्रान्तिकारी वेरा किग्नर की कहानियों से वे बहुत प्रभावित थे और उनके पास हिन्दी में लेनिन की लिखी एक pustak  भी थी। हंलांकि वे svayam पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने मे adhik आनन्दित होते थे। जब वे आजीविका के लिए बम्बई गए थे तो उन्होंने कई फिल्में देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था पर बाद में वे फिल्मो के प्रति आकर्षित नहीं हुए।
चंद्रशेखर आजाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारंभ किया गया आंदोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्‍वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के 16 वर्षों के बाद 15 अगस्‍त सन् 1947 को भारत की आजादी का उनका सपना पूरा हुआ।
मेरे आदर्श ,मेरी प्रेरणा चन्द्रशेखर आजाद पर लेखन के लिए आभारी हूँ! पत्रकारिता के गटर को साफ करने का प्रयास करते दशक होने को है, आज आप जैसा साथी मिला प्रसन्नता हुई अभी ब्लॉग जगत में संपूर्ण सृष्टि की जानकारी को खंडबद्ध कर विषयानुसार 25 ब्लॉग बनाये हैं yugdarpan.blogspot.com तिलक संपादक युग दर्पण 09911111611,  mihirbhoj.blogspot.com
तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें (बंदी भांति नियम उल्लेख पर्चे निर्णय भी )देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

Sunday, July 11, 2010

मन समर्पित, तन समर्पित

श्री राम अवतार त्यागी जी द्वारा लिखी गयी यह कविता जिसे हमने हिंदी की पुस्तक में पढ़ा था और इसका भाव यह है, कि कवि तन मन शरीर व आत्मा सब देश को समर्पित करने के बाद भी देश के लिए कुछ और करना चाहता है! दूसरी ओर देश का नेतृत्व और व्यवस्था  देखी जहाँ 60 वर्षों से लूटने के बाद भी तृप्ति नहीं होती, अपने स्विस खाते भरने हेतु देश को खोखला करने में संकोच नहीं! सत्य- असत्य, असली नकली के इस भेद को समझ जायेंगे जिस दिन, विश्व के क्षितिज पर चमकेंगे, विश्वगुरु  होंगे फिर उस दिन!...तिलक संपादक
-------------------------------------
मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

माँ तुम्हारा ॠण बहुत है, मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजा कर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण

गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

मांज दो तलवार, लाओ न देरी
बाँध दो कस कर क़मर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया घनेरी

स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

तोड़ता हूँ मोह का बन्धन, क्षमा दो
गांव मेरे, द्वार, घर, आंगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बायें हाथ में ध्वज को थमा दो

यह सुमन लो, यह चमन लो
नीड़ का त्रण त्रण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

Sunday, July 4, 2010

इंडिया क्लब में एंडरसन


" जनोक्ति विशेष " में इस सप्ताह पढ़िये आशुतोष जी का लेख " इंडिया क्लब में एंडरसन ! भोपाल के २५ हजार लोगों की मौत का जिम्मेदार एंडरसन किस तरह भारतीय राजनीति और न्यायपालिका में बैठे हमारे प्रतिनिधियों  द्वारा बचाया गया ? किस तरह एंडरसन ने किस -किस को उनकी स्वामिभक्ति के लिए पुरूस्कार स्वरुप क्या-क्या दिया ? कौन -कौन से नेता और वकील भारतीय जनता के गुनाहगार हैं ? इन प्रश्नों का जबाव आपको इस आलेख में मिल जायेगा और कुछ ऐसे चेहरे भी बेनकाब होंगे जो आज खुद को पाक साफ़ बता रहे हैं !  

Friday, June 18, 2010

भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)

तिलक राज रेलन
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
Comment: Two tragedies, two very different responses
अमरीकी  राष्ट्रपति ओबामा ने अपने देश के लिए ब्रिटिश पेट्रोलियम के क्षे.प्र. कार्ल हेनरिक स्वैन बर्ग की गर्दन दबाई!
ओबामा के उबाल का कमाल: अमेरिका की समुद्र तटीय सीमा पर ब्रिटिश पेट्रोलियम के साथ सहयोगी ट्रांस ओशियन व हैल्लीबर्टन सभी द्वारा तेल निकासी में असावधानी हुई - दुर्घटना घटी ! इसमें 11 लोगों की मृत्यु हुई साथ ही समुद्री कछुए , पक्षी , डालफिन भी मारे गए ! अमेरिकी पर्यटन व मछली उद्योग को भी क्षति पहुंची !इस पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उबल पड़े! विदेशी कं. ब्रि.पै. के क्षेत्र के प्रमुख को बुला लिया (व्हाइट हॉउस)! अमेरिका की विदेश नीति व विदेशियों के प्रति उनका व्यवहार सदा ही मेरी आलोचना का पात्र रहे हैं किन्तु उनके नेता अपने देश व देश वासियों के हितों  का समझौता   नहीं  करते  बल्कि  उनके हित  में करार  करने  को बेकरार  होते  हैं! उनका व्यक्तिगत चरित्र भले ही गिर जाये राष्ट्रीय चरित्र सदा प्रदर्शित  हुआ है!
ओबामा  ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रति पूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
Comment: Two tragedies, two very different responses
विश्व की सर्वाधिक भयावह औद्योगिक त्रासदी के पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं !
भोपाल गैस त्रासदी:- वैसे तो 1984 में 2 प्रमुख दुखद घटनाएँ घटी, किन्तु यहाँ एक की तुलना उपरोक्त से की जा सकती है चर्चा में ली जाती है! वह है भोपाल गैस त्रासदी --बताया जाता है इसमें 15000 सीधे सीधे दम घुटने से अकाल मृत्यु का ग्रास बने, 5 लाख शारीरिक विकार व भयावह कष्टपूर्ण अमानवीय यंत्रणा/त्रास /नरक भोगते हुए  मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! तो उनकी अगली पीडी भी इसे भोगने को अभिशप्त होगी! इससे वीभत्स और क्या होगा? इस सब के लिए उनका अपना कोई दोष नहीं था किन्तु दूसरों के दोष का दंड इन्हें भुगतना पड़ा ! क्यों? पशु पक्षियों का हिसाब हम तब लगाते यदि मानव को कीड़े मकोड़े से अधिक महत्व दे पाते? उद्योग/व्यवसाय की हानी तब देखते जब अपनी तिजोरियां स्विस खातों तक न भरी जातीं!एंडरसन को दिल्ली बुला कर कड़े शब्दों में देश/ जनहित का करार करने का दबाव बनाना तो दूर दिल्ली से आदेश भेजा गया उसे छोड़ने का, वह भी पूरे सम्मान के साथ ?
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?

कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
  दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह  बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
 एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी  और 5 दिसंबर को न्यायलय  के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन  किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट  है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं हैअपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?

Monday, May 24, 2010

कम्प्यूटर और स्वावलंबन

कम्प्यूटर और स्वावलंबन

म्पूटर आज के समय का सर्वाधिक विश्वसनीय व् महत्वपूर्ण उपकरण है जिसपर हम पूर्णतया निर्भर करते हैं! सर्च इंजन से कुछ भी खोज सकते हैं मात्र एक संकेत पर ! मदारी ने कुछ चमत्कार दिखलाय, (पहले के मदारी तो खेल करतब से मनोरंजन कर दो समय की रोटी की भीख मानता था) हमारे देश के नेताओं ने देश का भविष्य ही मदारी के हाथों सौंप दिया! कभी वायरस, कभी हेकिंग, कभी गुप्त जानकारी से बेंक से खाता खाली! कुछ दिन पूर्व नोएडा पुलिस का नेटवर्क जो विदेशी संचित था बंद हो गया था! संभवत: यह पुराभ्यास था इस देश को ठप्प करने का, अथवा इस धमकी से कुछ मनवाने का प्रयास! अब हम आगे बड़ते हैं -हमने खोजना चाह भारत योग संस्थान, हमें उसके स्थान पर 3 प्रकार के परिणाम विदेशों के योग क्लब , कई प्रकार के संसथान भारत पेट्रोलियम से लेकर भारत के वेश्यालयों तक की जानकारी मिलेगी! अब आप भारत योग संसथान पंजीकृत कर पुन: खोजना चाहें निश्चित नहीं है खोज पाना ! कई बार हम अपनी ही साईट खोलने हेतु पासवर्ड डालते है- आपका पासवर्ड स्वीकार नहीं होता आपको कहा जाता है आप पासवर्ड भूल गए हैं आपके दुसरे पते पर नया अवसर आपको दिया जाता है यदि अन्य पता नहीं है तो ?.. आपको दास बनाने वाले मुक्ति के सभी मार्ग बंद कर देते हैं ! एक है कम्पूटर का ज्ञान कोष विकिपीडिया एक बार उसका अनुभव लिया मेटाविकी कई विषयों पर कई भाषाओँ पर अपनी भाषा देखने की उत्सुकता जगी तो पाया विश्व के कई ऐसे देश जिनका नाम भी नहीं जाना जाता उनकी भाषा, नेपाली तक में मेटा विकी है किन्तु हिंदी में नहीं! विश्व की महाशक्ति बनने के प्रयास में हर छोटे बड़े देश की धमकी सुनते सुनते हम मेटा विकी हिंदी में नहीं कर पाए !

चलिए राष्ट्र निर्माण का प्रयास करते हैं ! अपनी बात सर्व सहमती की होनी चाहिए, इस विषय पर अन्य विद्वानों के विचार जानने के लिए विषय अंकित कर बटन दबाया कई लेखकों की सूचि मिली, विषय विवरण पड़कर धीरज बंधा की हमारे विचार से मेल खाता है ! ज्ञान बंटोरने लगे तो सभी अमेरिका के राष्ट्र निर्माण की बात करते मिले! अँगरेज़ कहते थे भारत कभी एक राष्ट्र नहीं था अब अमेरिका व् मैकाले की अनुचित संतानों को पुष्टि मिल गई ! पराश्रित विकास क्रम में कभी भी नीचे से सीडी खिंच सकती है किन्तु स्वावलंबी धीरे चले तो भी विजय निश्चित, निर्बाध है !
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था,आजभी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

Monday, May 17, 2010

देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं ! पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

Tuesday, May 11, 2010

लाल दुर्ग की दीवारों में दरारें

अविश्वसनीय किन्तु शीतलतादायक गरमागरम सत्य                  -अरविन्द कुमार सेन
समय: रात के 8 बजे। स्थान: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का माही-मांडवी छात्रावास का भोजनालय। छात्र खाना खा रहे हैं। आइसा, एसएफआई, डीएसयू, पीएसयू और एआईडीएसओ आदि वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य छात्र भोजनालय में पहुंचते हैं। हाथों में बैनर और तख्तियां लिए ये छात्र दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमलें को सही ठहराते हैं और ऑपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ बोलते हैं। डीएसओ की प्रतिनिधी छात्रा ने मुश्किल से एक मिनट बोला होगा कि अचानक भोजनालय में उपस्थित सारे छात्र चिल्लाने लगते हैं। कोई चम्मच से प्लेट बजा रहा है तो कोई जग से टेबल बजा रहा है। माहौल तनावपूर्ण हो जाता है और वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य बाहर की ओर दौड़ते हैं।
     माही-मांडवी के छात्र भी उनके पीछे-पीछे ‘नक्सलवाद मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए बाहर आ जाते हैं। कुछ छात्र छात्रावास के सूचना पट्ट से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़कर उन्हें गेट के पास जला देते हैं।
     छात्रावास के गेट के पास धीरे-धीरे भीड़ जमा होने लगती है। इस भीड़ में ज्यादातर ऐसे छात्र हैं जो किसी भी छात्र संगठन से नहीं जुड़े हैं। बिना किसी पूर्व योजना के एकत्रित हुए ये छात्र माओवादी हमले की आलोचना करते हैं। अचानक अफवाह फैलती है कि छात्रावास के एक लड़के का भाई भी एस हमले में मारा गया है। भावावेश में सारे छात्र जोर-जोर से नारे लगाते हैं और थोड़ी देर बाद सामने स्थित कोयना छात्रावास की ओर चल देते हैं। आन्दोलनों से दूर रहने वाले विज्ञान संकाय के छात्र भी आज इस भीड़ में शामिल हैं।
     ‘शहीदों हम तुम्हारे साथ हैं’, ‘चीन के दलालों शर्म करो’ के नारों की गूंज के बीच कोयना छात्रावास के सूचना पट्ट से भी वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं। इतने में छात्रावास से कुछ लड़कियां माचिस लेकर बाहर आती हैं और पोस्टरों को जला देती हैं। इसके बाद छात्र-छात्राओं की यह भीड़ बढती जाती है और एक-एक करके लोहित, चन्द्रभागा, गंगा, यमुना, ताप्ती, साबरमती समेत सभी छात्रावासों के सूचना पट्टों से वामपंथी छात्र संगठनों के पोस्टर फाड़ दिए जाते हैं।
     इसके बाद सारी भीड़ 24 गुणा 7 ढाबे पर एकत्रित होती है। छात्र-छात्राएं एक-एक करके बोलना शुरू करते हैं। चूंकि भीड़ में किसी संगठन विशेष का कोई छात्र नेता नहीं है इस कारण वक्ताओं के जो मन में आ रहा है, वही बोलते जा रहे हैं। एक लड़की कहती है- बस अब बहुत हो गया, अब और तानाशाही नहीं सहेंगे। क्या कर लेंगे आईसा और एसएफआई वाले जाकर विभाग में सर से शिकायत कर देंगे, ग्रेड कम करवा देंगे, एमफिल में एडमिशन नहीं होगा। कोई बात नहीं, डीयू में चले जाएंगे लेकिन यहां इन लोगो की दादागिरी नहीं सहेंगे।
     एक और छात्र गौरव कहता है कि जेएनयू की इस दिखावे की जिंदगी से जी भर गया है। अगर कम्यूनिस्टों के खिलाफ कुछ भी बोलो तो दक्षिणपंथी समझ लिया जाता है और परीक्षा में ग्रेड़ कम कर दिया जाता है। देशभर के मुद्दों के लिए लड़ने का दंभ भरने वाले ये लोग जेएनयू में क्या कर रहे हैं इस सामाजिक संवेदनशीलता के ढोंग से जी भर गया है। गौरव अपनी बुआ के लड़के को याद करते हैं जो हाल ही में हुए माओवादी हमले में मारा गया। गौरव की आंखे नम हो जाती हैं और भर्राई आंखों से यह कहकर अपनी बात खत्म करते है कि बेशक जेएनयू छोड़ना पड़े लेकिन अब इन लोंगो का साथ नहीं देंगे। यह सभा लगभग 11 बजे खत्म हो जाती है।
     समय 11:30 बजे और स्थान जेएनयू का थिंक टैंक सेंटर गंगा ढाबा। गंगा ढाबा आज ऐसी घटना का गवाह बना जो पिछले 4 दशकों में कभी नहीं हुई। ऊंची आवाज में होने वाली बहसें और नोक-झोंक आज नहीं हो रही हैं। गंगा ढाबे की पत्थर की कुर्सियां, जहां महफिले जमती थी, आज खामोशी के आवरण में लिपटी हुई हैं। इस सन्नाटे में कुछ छात्र धीमे-धीमे बात कर रहे हैं। आज तो क्रान्ति हो गई, गजब हो गया, माही-मांडवी वालों ने कमाल कर दिया.. यही सब आवाजें रह-रहकर गंगा ढावे की फिजां में तैर रही हैं।
     क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र की छात्रा अनुष्का कहती हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों के खिलाफ छात्र लंबे समय से उबल रहे थे। नक्सली हमले ने छात्रों को अपना आक्रोश जाहिर करने का अवसर दे दिया। छात्र प्रोफेसरों से डरते थे लेकिन आज यह सीमा भी टूट गई और सब छात्र सड़क पर आ गए। अनुष्का के बगल में खड़े राजीव आगे की बात कहते हैं। वे कहते हैं कि वामपंथी छात्र संगठनों ने विरोध करने के लिए गलत समय का चुनाव किया। 77 जवानों की मौत के बाद माओवादी लोंगो की सहानुभूति खो चुके हैं। एक तो ये संगठन पहले से ही खराब दौर से गुजर रहे हैं और फिर इनके प्रदर्शन से एबीवीपी और एनएसयूआई को मुंह मांगी मुराद मिल गई।
     पिछले 10 सालों से परिसर की राजनीति देख रहे शोध छात्र विवेक कहते हैं कि आज का प्रदर्शन जेएनयू की छात्र राजनीति में नया अध्याय है। पहले एबीवीपी और एनएसयूआई के कार्यकर्ता प्रदर्शन तो दूर परिसर में पोस्टर तक नहीं चिपका पाते थे लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आज जो हुआ, उसकी तो सपने में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
     वामपंथी खेमा इस घटना के बाद से स्तब्ध है। जिस दुर्ग को सबसे अभेद्य समझा जाता था, आज उसकी दीवारों पर चिपके पोस्टरों पर लिखा है कि कम्यूनिस्ट कोई भी परचा न लगाए। डीएसयू के एक कार्यकर्ता ने दबी जुबान में कहा कि हमने गलत समय पर नक्सलवाद के समर्थन में प्रदर्शन करके एबीवीपी और एनएसयूआई को हावी होने का मौका दे दिया।
     दक्षिण एशिया अध्ययन केन्द्र के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस घटना कि पृष्ठभूमि पिछले पांच साल से तैयार हो रही थी। पहले जेएनयू में बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे राज्यों के प्रोफेसर और छात्र हावी थे। उस समय हिन्दी पट्टी और खासकर बीएचयू और डीयू के छात्रों का प्रवेश न के बराबर होता था। अब न केवल प्रोफेसर बल्कि डीयू और बीएचयू के छात्र भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं, जो पहले से ही भगवा रंग में रंगे होते हैं।
     खास बात यह है कि एबीवीपी और एनएसयूआई जैसी धुर विरोधी पार्टियां एक साथ मिलकर वामपंथी छात्र संगठनों से लड़ रही हैं। अपने सबसे कठिनतम दौर से गुजर रही वामपंथी पार्टियों के लिए यह एक और बुरी खबर है। बंगाल और केरल के बाद तीसरे मजबूत गढ जेएनयू की दीवारों में भी दरारें आ गई हैं। जिस परिसर में इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह तक को नहीं बोलने दिया गया था, आज उसी जगह कम्यूनिस्ट पार्टियां को पोस्टर तक नहीं लगाने दिया जा रहा है।
     प्रकाश करात और सीताराम येचुरी की कर्मस्थली जेएनयू में आज भारत माता की जय और वन्दे मातरम् के नारे गूंज रहे हैं। यह देश में वामपंथ की चूलें हिलने का एक और संकेत है।
  देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

Tuesday, May 4, 2010

BJP calls for a new Kashmir lead by youth

(Bharatiya Janata Party, Jammu & Kashmir Rajbagh, Srinagar, Kashmir
Press statement by Jenab Tarun Vijay, National Spokesperson, BJP.
04th May 2010. Srinagar)

     On my first visit to Srinagar after assuming the office of National Spokesperson, BJP, I have found the people, the common Kashmiris peace loving, wanting to have a prosperous and harmonious future, specially the youth of the valley. I bring good wishes and prayers for happy times for them on behalf of my Party President Shri Nitin Gadkari and the entire cadre.
     Its time for a New Kashmir led by the youth to rise leading into the era of peace, prosperity and progress. The wise, brilliant, futuristic path is at a stone’s throw away spreading its arms that ensure liberalism and happiness. We must lend an ear and guide them for the future. Their anger should be channelized into employment avenues. Our Party President Shri Nitin Gadkari has given a special message of goodwill for the youth of Kashmir wishing them happiness and a peaceful time ahead that must make every Indian proud.
I would also like to salute the Kashmiri Mothers who painstakingly tried and succeeded to a great extent keeping away their children from terrorism and destructive activities. Their heart and soul witnessed mayhem upsetting the real spirit of a composite culture of Kashmiriyat and they have stood firmly for saner and civilized values. Let’s walk together. I invite the youth and the women power to join BJP and create progressive entrepreneurship in the region of science, technology and protection of the environment that can become an example for the rest of India.
     A Number of incidents have been noticed where the local Muslims have courageously stood with their Kashmiri Hindu brethren and helped. A large number of them want Hindus come back and also support those who have stayed back. It’s a welcome sign that must get the national attention and accelerate the creation of a situation where all Hindus feel safe to return. One example, amongst many I heard is of Fateh Kadal, where a Shri Rama Shaiv Ashram was rebuilt by the active help from local Muslim friends. I wish such examples are highlighted by media also.
     Nothing can surpass the humanitarian values of the Kashmiri society, a beacon light for the Indianness. We trust the best of the solutions to all issues can be found through the path of Insaniyat, not through bullets.
Office secy.
BJP J&K, Srinagar,04-05-2010
देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया ! इंडिया से भारत बनकर ही विश्व गुरु बन सकता है! पाक के सभी नापाक इरादों को असफल कर इस देश ने यह दिखा दिया है, "यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,योग्यता व क्षमता विद्यमान है!- तिलक