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Monday, January 17, 2011

भारतीयता बचाने के लिये भारतीय भाषाओं में जीना अनिवार्य ---- विश्वमोहन तिवारी,एयर वाइस मार्शल (से .नि .)

देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

किसी भी राष्ट्र की संस्कृति उसकी भाषा,संगीत,नृत्य,खानपान,पहनावा,तथा धर्म में निहित होती है,भाषा के द्वारा वह पनपती है,अन्यथा वानर भी हमारे ही तरह सुसंस्कृत होते।संस्कार जन्म से ही पड़ना प्रारम्भ हो जाते हैं।बालक व्यवहार की नकल करता है तथा भाषा द्वारा,अभिव्यक्ति करने से भी अधिक महत्वपूर्ण,जीवन का अर्थ,उसके मूल्य तथा जीवन जीने की कला सीखता है।अपनी संस्कृति जीवन के मूल्य सिखलाने के अतिरिक्त,संवेदनशीलता,मिटृी,हवा,पानी,आकाश और सूर्य से प्रेम करना भी सिखलाती हैऌ तथा स्वयं अपनी संस्कृति से भी प्रेम करना सिखलाती है।रसखान बार बार जन्म लेकर उसी ‘ब्रज गोकुल गॉव के ग्वारन’ में रहना चाहते है।संस्कृति के सहज संस्कारों के लिए सुसंस्कृत व्यवहार तथा भाषा यह दो माध्यम महत्वपूर्ण हैं। भाषा को अपने में इतना गरिमामय कर्म करने की क्षमता लाने में सदियां लगती हैंै।

यदि हमारी भाषा चली गई तो ‘हमारा’ भी विनाश हो जाएगा। मात्र इतना नहीं कि इस राष्ट्र में इस राष्ट्र की भाषा बोलने सुनने वालों के स्थान में अंग्रेजी बोलने वाले आ जाएंगे।इस तरह बोलने वाले जो ‘वर्णसंकर’ आएंगे वे मानवीय मूल्यों से,उन शाश्वत मूल्यों से,स्थानीय तथा तात्कालिक मूल्यों से हीन होंगे जो उन्हें इस मिटृी पानी में मानव बना सकते है।वे संभव है कि अपनी पढा.ई लिखाई में – पुस्तकीय ज्ञान – में निष्णात हों,उनमें एक विमान के बराबर ताकत हो सकती है किन्तु उनके विमान में यदि ‘रडर’ ह्यदिशा निर्धारकहृ होगा तब वह ‘रीमोट’ चालित होगा।उन्हें एंजिन ह्यज्ञानहृ द्वारा तेज उड़ने की क्षमता तो मिलेगी किन्तु अपने विमान की दिशा पर वे नियंत्रण नहीं रख सकेंगे और निश्चित रूप से कभी न कभी ‘क्रैश’ करेंगे।अंगेजी पढ़ने के बावजूद उनमें पाश्चात्य संस्कृति के लाभदायी संस्कार भी नहीं आ पाएंगे।पाश्चात्य संस्कृति पाश्चात्य हवा – पानी­ मिट्टी के लिए विकसित हुई है। उदाहरणार्थ,उन्हे वर्षा ऋतु अच्छी नहीं लगती,शीत ऋतु नहीं भाती,बसंत और ग्रीष्म ही भाती हैं ।प्रकृति तो उनके लिये मात्र उपभोग्य वस्तु ही है,अन्य मनुष्य भी उनके लिये उपभोग्य वस्तु ही होंगे।

सारांश में कहूं तो भाषा का विषय बहुत गम्भीर है – अस्तित्व का प्रश्न है,एक व्यक्ति के नहीं किन्तु,एक समाज,एक राष्ट्र के अस्तित्व का।भाषा मात्र विचारों के सम्प्रेषण का माध्यम नहीं है,वह एक भूगोल के,इतिहास के,समाज के बीच जीवन को जीवन्त बनाने का माध्यम है,उसमें राम आदर्श स्थापित करते हैं तो कृष्ण व्यावहारिक आदर्श।और दुःख की बात यह है कि हम भाषा को मात्रा ‘रोटी’ कमाने के ध्येय से,हालॉंकि वह भी त्रुटिपूर्ण,सीखते हैं,जिसका स्तर कामचलाऊ होता है।किन्तु हमारी अंग्रेजी की गुलामी इतनी बढ़ गई है कि आज हम नर्सरी से ही विदेशी भाषा सिखाने का प्रयत्न कर रहे हैं।यह भूल जाते है कि जब बच्चे एक भाषा कुछ अच्छी तरह से सीख लेते है तब वे अन्य भाषाएं भी सरलतापूर्वक सीख सकते है। और जब वे एक भी भाषा ठीक से नहीं सीख पाते,तब अन्य भाषाएं भी ठीक से नहीं सीख सकते।मातृभाषा सीखने के लिये बच्चे को सबसे कम परिश्रम करना पड़ता है और वह उसके हृदय की भाषा भी सहज ही बनती है।अंग्रेजी विश्व की एक महत्वपूर्ण भाषा है,उसे भी सीखना चाहिए किन्तु विचारणीय है कि भारत कीे कितनी प्रतिशत जनता को अंग्रेजी सीखने की आवश्यकता है ऋ

भाषा जैसे महत्वपूर्ण विषय में एक बात को स्पष्ट करने की आवश्यकता अभी भी रह जाती है।वह है,इतने विशाल राष्ट्र के लिए जिसमें 18 भाषाएं राज्यों तथा संघ द्वारा स्वीकृत हैं,संपर्कभाषा या राजभाषा कौन सी हो ? इस राष्ट्र की संस्कृति तो मूलरूप से एक है,इसीलिए ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’।अतएव भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिये,पाश्चात्य संस्कृति को लाने वाली अंग्रेजी भाषा – वह चाहे कितनी ही विश्व सुगम क्यों न हो ­ नहीं हो सकती । इस विषय पर हमारे राष्ट्र के सभी महान नेता एक मत थे,और वही संविधान में परिलक्षित हुआ है। विश्व में हिन्दी बोलने –सुनने वालों की संख्या द्वितीय या तृतीय है ।तब हम क्यों डरते हैं ? क्या इसमें आपसी सौहाद्र्र की कमी नजर आती है? थोड़ा परिश्रम करें तब हिन्दी में भी अंग्रेजी के समान ज्ञान का भंडार आ जाएगा।भारत अब एक ऐसा विकासशील राष्ट्र है जो विकास संपन्न होने के लिए ‘टेक –आफ’ की पटृी पर आ गया है।किसी भी विषय में मौलिक चिन्तन की क्षमता की संभावना उसकी भाषाओं में है।

सभी विद्वानों का मत है कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होना चाहिए।माध्यमिक शिक्षा में हिन्दी विशेष रूप से,अन्य भारतीय भाषाएं,अंग्रेजी तथा अन्य भाषाएं सिखलाना चाहिए।पूरी माध्यमिक तथा महाविद्यालय की शिक्षा का माध्यम उस प्रदेश की भाषा ही रहना चाहिए।महाविद्यालय में अंग्रेजी में विशेष योग्यता चाहने वालों के लिये कुछ विषयों का माध्यम अंग्रेजी हो सकता है।

हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में समुत्रत करने के लिए हमें सबसे पहले अंग्रेजी से मोह हटाना होगा।अपनी गलत हीन भावना को दूर करना होगा। इसके लिए मात्र इतना ही साहस चाहिए,“चलें,हम मातृभाषा में काम शुरू तो करें।”

हिंदी को संपर्क भाषा का व्यावहारिक रूप देने के लिए अंग्रेजी को रोटी की अनिवार्यता से अलग करना अत्यंत आवश्यक है।विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा हिंदी के बीच विचार विनिमय,अंतर्भारतीय भाषाओं के बीच सीधे अनुवाद के कार्य को बढा.वा देना,इस हेतु कार्यशालाएं,गोष्ठियॉं,पत्रिकाओं इत्यादि को बढ़ावा देना चाहिए।इस दिशा में हिन्दी अकादमी,दिल्ली ने विभिन्न प्रदेशों में गोष्ठियां तथा कार्यशालाएं आयोजित करना प्रारंभ किया हैऌ ऐसा सभी प्रदेशों के हिन्दी संस्थानों को तो करना ही चाहिये,अन्य सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थाओं,सभी को ऐसा कार्य करना चाहिए।दूरदर्शन इस दिशा में सभी भारतीय भाषाओं की अच्छी कृतियों की प्रस्तुति कर तो रहा है किन्तु उससे हमें कहीं अधिक अपेक्षा है– दोनो में मात्रा में तथा ‘गुणवत्ता में’।

गैर हिन्दी भाषा राज्यों के छात्रों को,विशेषकर पूर्वांंंचल क्षेत्र के छात्रों को,यथेष्ट छात्रवृति देकर हिंदी भाषी राज्यों में हिन्दी माध्यम में पढ़ने के लिए उत्साहित करना चाहिए।तथा इसका विलोम भी अर्थात हिन्दी भाषी राज्यों के हिन्दी भाषी छात्रों को इतर राज्यों मे छात्रवृति देकर,उन्हे उसी राज्य की भाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।यह बहुत ही ‘व्यय– प्रभावी’ पद्धति बन सकती है न केवल हिंदी को प्रभावी संपर्क भाषा बनाने के लिए,वरन आपसी सांस्कृतिक समझ के लिये भी।

सभी हिन्दी राज्यो में हिन्दी के अतिरिक्त,कम से कम,एक अन्य भारतीय भाषा की शिक्षा अनिवार्यतः दी जाना चाहिए। उदाहरणार्थ,मध्यप्रदेश में तेलगू हो सकती है।और उत्तर प्रदेश में मलयालम या तमिल,तथा बिहार में बंग्ला या असमिया. की शिक्षा आदि आदि का प्रबन्ध होना चाहिए। संस्कृति की शिक्षा भी दी जाना चाहिए। संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का अक्षय कोश है।संस्कृत की शिक्षा प्राथमिक स्तर तक भी यदि दी जा सके तब भी वह लाभदायक होगी।भाषाओं को ‘अभिरुचि’ के रूप में सीखने की सुविधाएं दी जाना चाहिये,यथा ‘भाषा’ सीखने के लिए ‘दृश्य –श्रव्य’ माध्यमों का उपयोग होना चाहिए,इनके लिए शालाओं में क्लबों की स्थापना की जा सकती है।

उच्चस्तरीय मूल लेखन के लिए,विशेषकर तकनीकी तथा शास्त्रीय विषयों में लेखन­ पठन तथा अनुसंधान के लिए हिन्दी को विशेष प्रोत्साहन मिलना चाहिए।भारतीय भाषाओं पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनमें उच्चस्तरीय अनुसंधान का मूल लेखन नगण्य है ।ऐसा नहीं कि उनमेेंं ऐसी क्षमता नहीं है,बस इस तरफ ध्यान अबश्य दिया जाना चाहिए।हिंदी साहित्यिकों के लिए पुरस्कारों की,उनकी संख्या की,राशि की तथा गरिमा की स्थिति संतोषप्रद है। किंतु वैज्ञानिक, औद्योगिक,अर्थशास्त्रीय,समाजशास्त्रीय,भाषा वैज्ञानिक, गणितीय, रक्षाविभागीय,वित्तीय,ऐतिहासिक,भोैगोलिक आदि विषयों पर कितने पुरस्कार हैं ,कितनी सहायता या प्रोत्साहन मिलता है ॐ स्थिति दयनीय है। मूल चिन्तन तथा मूल लेखन को भारतीय भाषाओं में बढा.वा देने के लिए सर्वप्रथम तो भारतीय भाषाओं के माध्यम में शिक्षा की आवश्यकता है।फिर,इन साहित्येतर विषयों पर पुरस्कारों के अतिरिक्त,अन्य सुविधाओं यथा पुस्तकालयों,प्रकाशन आदि को बढा.वा देने की आवश्यकता भी है।

आज चूँकि आबादी– विस्फोट से हम पीड़ित हैं और आम आदमी की पहली चिन्ता रोजी –रोटी की हो गई है इसलिए यदि आम आदमी यह सोचता है कि अंग्रेजी से उसे रोटी मिलेगी,हिन्दी से नहीं तो यह त्रुटि हमें अपनी सामाजिक व्यवस्था से दूर करना होगा।हिन्दी को उसका यथा योग्य स्थान देने के बाद किसी भी नौकरी में काम करने की योग्यता मापते समय उसे अंग्रेजी से तभी मापा जाए कि जब उस कार्य के संपादन के लिए अंग्रेजी आवश्यक हो,यथा ब्रिटैन या यू एस ए से सम्पर्क,भारत के भीतर संपर्क के लिये नहीं।मोहवश या एक वायवीय संकल्पना के तहत उस कार्य की क्षमता मापने के लिए अंग्रेजी का मापदण्ड नहीं होना चाहिए। कोई भी कार्य करने के लिए यदि अंग्रेजी आवश्यक नही है,तब मात्र पत्राचार के लिए उसे आवश्यक मानना मोह ग्रस्त होना है।अंग्रेजी को बढ़ावा देने में यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हमारी सरकार ही सर्वाधिक दोषी है।सर्वप्रथम हमें अपनी शासन व्यवस्था में से अंग्रेजी हटाकर अपनी भाषाएं लाना जरूरी है।अंतर्राष्ट्रीय बनने का स्वप्न तभी सार्थक होगा कि जब हम अंतर्राष्ट्रीय बनने से पहले राष्ट्रीय तो बनें।और राष्ट्रीय बनने के लिये अंग्रेजी को राजभाषा का दर्जा देने की अपेक्षा हिन्दी न्यायोचित तथा उपयोगी माध्यम है।

आज वैज्ञानिक तथा औद्योगिक आविष्कारों ने कम्पयूटरों को बहुभाषीय बना दिया है।किसी भी भारतीय भाषा में कम्प्यूटर में कार्य करना सुगम हो गया है।जब एक छोटा सा देश जापान या इज़राइल अपने समस्त कार्य अपनी भाषाओं में करते हुए विश्व के अग्रणी देशो में आ सकता है,तब हम क्यों नहीं।जापान विश्व में दूसरी बड़ी आर्थिक शक्ति है,और इज़राएल नोबेल पुरस्कार जीतने में। चार भाषाओ वाला ग्रेट ब्रिटैन,अंग्रेजी को सम्पर्क भाषा मानकर तथा अनेक भाषाओ वाला सोवियत संघ ह्यजिसका कि अब माक्र्सवादी सोच की विफलता के कारण विघटन हो चुका है हृ रूसी भाषा के माध्यम द्वारा विश्व की अग्रिम पंक्ति में रह सकते हैं तब हम क्यों नही ॐ इन सभी देशों ने अनुवाद के कार्य में यथेष्ट क्षमता प्राप्तकर,समस्त आवश्यक जानकारी अपनी भाषा में उपलब्ध कराई है।हम अंग्रेजी का उपयोग करें उसकी गुलामी नहीं,भारतीय भाषओं में जीवन जीते हुए ही भारत भारत रहेगा,उन्नति करेगा,सामथ्र्यवान देश बनेगा,विश्व की अग्रिम पंक्ति में सम्मानपूर्वक खड़ा होगा।

विश्वमोहम तिवारी,एयर वाइस मार्शल ह्यसे .नि .हृ,143,सैक्टर 21,नौएडा,201301


Monday, January 10, 2011

लाल बहादुर शास्त्री आदर्श आरंभिक जीवन

लाल बहादुर शास्त्री आदर्श आरंभिक जीवन 

लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म शारदा श्रीवास्तव प्रसाद, स्कूल अध्यापक व रामदुलारी देवी. के घर मुगलसराय(अंग्रेजी शासन के एकीकृत प्रान्त), में हुआ जो बादमें अलाहाबाद [1] के रेवेनुए ऑफिस में बाबू हो गए ! बालक जब 3 माह का था गंगा के घाट पर माँ की गोद से फिसल कर चरवाहे की टोकरी (cowherder's basket) में जा गिरा! चरवाहे, के कोई संतान नहीं थी उसने बालक को इश्वर का उपहार मान घर ले गया ! लाल बहादुर के माता पिता ने पुलिस में बालक के खोने की सुचना लिखी तो पुलिस ने बालक को खोज निकला और माता पिता को सौंप दिया[2].
बालक डेढ़ वर्ष का था जब पिता का साया उठने पर माता उसे व उसकी 2 बहनों के साथ लेकर मायके चली गई तथा वहीँ रहने लगी[3]. लाल बहादुर 10 वर्ष की आयु तक अपने नाना हजारी लाल के घर रहे! तथा मुगलसराय के रेलवे स्कुल में कक्षा IV शिक्षा ली, वहां उच्च विद्यालय न होने के कारण बालक को वाराणसी भेजा गया जहाँ वह अपने मामा के साथ रहे, तथा आगे की शिक्षा हरीशचन्द्र हाई स्कूल से प्राप्त की ! बनारस रहते एक बार लाल बहादुर अपने मित्रों के साथ गंगा के दूसरे तट मेला देखने गए! वापसी में नाव के लिए पैसे नहीं थे! किसी मित्र से उधार न मांग कर, बालक लाल बहादुर नदी में कूदते हुए उसे तैरकर पार कर गए[4].
बाल्यकाल में, लाल बहादुर पुताकें पढ़ना भाता था विशेषकर गुरु नानक के verses. He revered भारतीय राष्ट्रवादी, समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक .वाराणसी 1915 में महात्मा  गाँधी का भाषण सुनने के पश्चात् लाल बहादुर ने अपना जीवन देश सेवा को समर्पित कर दिया[5] !  महात्मा  गाँधी के असहयोग आन्दोलन 1921 में लाल बहादुर ने निषेधाज्ञा का उलंघन करते प्रदर्शनों में भाग लिया ! जिस पर उन्हें बंदी बनाया गया किन्तु अवयस्क होने के कारण छूट गए[6] ! फिर वे काशी विद्यापीठ वाराणसी में भर्ती हुए! वहां के 4 वर्षों में वे डा. भगवान दास के lectures on philosophy से अत्यधिक प्रभावित हुए! तथा राष्ट्रवादी में भर्ती हो गए ! काशी विद्यापीठ से 1926, शिक्षा पूरी करने पर उन्हें शास्त्री की उपाधि से विभूषित किया गया जो विद्या पीठ की सनातक की उपाधि  है, और उनके नाम का अंश बन गया[3] ! वे सर्वेन्ट्स ऑफ़ द पीपल सोसाईटी आजीवन सदस्य बन कर मुजफ्फरपुर में हरिजनॉं के उत्थान में कार्य करना आरंभ कर दिया बाद में संस्था के अध्यक्ष भी बने[8].
1927 में, जब शास्त्री जी का शुभ विवाह मिर्ज़ापुर की ललिता देवी से संपन्न हुआ तो भारी भरकम दहेज़ का चलन था किन्तु शास्त्रीजी ने केवल एक चरखा व एक खादी  का कुछ गज का टुकड़ा  ही दहेज़ स्वीकार किया ! 1930 में,महात्मा  गाँधी के नमक सत्याग्रह के समय वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े, तथा ढाई वर्ष का कारावास हुआ[9]. एकबार, जब वे बंदीगृह में थे, उनकी एक बेटी गंभीर रूप से बीमार हुई तो उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग न लेने की शर्त पर 15 दिवस की सशर्त छुट्टी दी गयी ! परन्तु उनके घर पहुँचने से पूर्व ही बेटी का निधन हो चूका था ! बेटी के अंतिम संस्कार पूरे कर, वे अवधि[10] पूरी होने से पूर्व ही स्वयं कारावास लौट आये !  एक वर्ष पश्चात् उन्होंने एक सप्ताह के लिए घर जाने की अनुमति मांगी जब उनके पुत्र को influenza हो गया था ! अनुमति भी मिल गयी किन्तु पुत्र एक सप्ताह मैं निरोगी नहीं हो पाया तो अपने परिवार के अनुग्रहों (pleadings, के बाद भी अपने वचन के अनुसार वे कारावास लौट आये[10].
8 अगस्त 1942, महात्मा गाँधी ने मुंबई के गोवलिया टेंक में अंग्रेजों भारत छोडो की मांग पर भाषण दिया ! शास्त्री जी जेल से छूट कर सीधे पहुंचे जवाहरलाल नेहरु के hometown अल्लहाबाद और आनंद  भवन से एक सप्ताह स्वतंत्रता सैनानियों को निर्देश देते रहे ! कुछ दिन बाद वे फिर बंदी बनाकर कारवास भेज दिए गए और वहां रहे 1946 तक[12], शास्त्री जी कुलमिला कर 9 वर्ष जेल में रहे [13]. जहाँ वे पुस्तकें पड़ते रहे और इसप्रकार पाश्चात्य western philosophers, revolutionaries and social reformer की कार्य प्रणाली से अवगत होते रहे ! तथा मारी कुरी की autobiography का हिंदी अनुवाद भी किया[9].
आज़ादी के बाद 
भारत आजाद होने पर, शास्त्री जी अपने गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव नियुक्त किये गए! गोविन्द  बल्लभ  पन्त के मंत्री मंडल के पुलिस व यातायात मंत्री बनकर पहली बार महिला कन्डक्टर की नियुक्ति की ! पुलिस को भीड़ नियंत्रण हेतु उन पर लाठी नहीं पानी की बौछार का उपयोग के आदेश दिए[14].
1951 में राज्य सभा सदस्य बने तथा कांग्रेस महासचिव के नाते चुनावी बागडोर संभाली, तो 1952, 1957 व 1962 में प्रत्याशी चयन, प्रचार द्वारा जवाहरलाल  नेहरु को संसदीय चुनावों में भारी बहुमत प्राप्त हुआ! केंद्र में 1951 से 1956 तक रेलवे व यातायात मंत्री रहे, 1956 में महबूबनगर की रेल दुर्घटना में 112 लोगों की मृत्यु के पश्चात् भेजे शास्त्रीजी के त्यागपत्र को नेहरुजी ने स्वीकार नहीं किया[15]! किन्तु 3 माह पश्चात् तमिलनाडू के अरियालुर दुर्घटना (मृतक 114) का नैतिक व संवैधानिक दायित्व मान कर दिए त्यागपत्र को स्वीकारते नेहरूजी ने कहा शास्त्री जी इस दुर्घटना के लिए दोषी नहीं[3] हैं किन्तु इससे संवैधानिक आदर्श स्थापित करने का आग्रह है ! शास्त्री जी के अभूत पूर्व निर्णय की की देश की जनता ने भूरी भूरी प्रशंसा की ! 
1957 में, शास्त्री जी संसदीय चुनाव के पश्चात् फिर मंत्रिमंडल में लिए गए, पहले यातायात व संचार मंत्री, बाद में वाणिज्य व उद्योग मंत्री[7] तथा 1961 में गृह मंत्री बने[3] तब क.संथानम[16] 
की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार निवारण कमिटी गठित करने में भी विशेष भूमिका रही ! 
प्रधान मंत्री 
लाल बहादुर शास्त्री  जी  का नेतृत्व 
27 मई 1964 जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु से उत्पन्न रिक्तता को 9 जून को भरा गया जब कांग्रेस अध्यक्षक. कामराज ने  प्रधान मंत्री पद के लिए एक मृदु भाषी, mild-mannered नेहरूवादी शास्त्री जी को उपयुक्त पाया तथा इसप्रकार पारंपरिक दक्षिणपंथी मोरारजी देसाई का विकल्प स्वीकार हुआ ! प्रधान मंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम प्रथम सन्देश में शास्त्री जी ने को कहा[17]
हर राष्ट्र के जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब वह इतिहास के चौराहे पर खड़ा होता है और उसे अपनी दिशा निर्धारित करनी होती है !.किन्तु हमें इसमें कोई कठिनाई या संकोच की आवश्यकता नहीं है! कोई इधर उधर देखना नहीं हमारा मार्ग सीधा व स्पष्ट है! देश में सामाजिक लोकतंत्र के निर्माण से सबको स्वतंत्रता व वैभवशाली बनाते हुए विश्व शांति तथा सभी देशों के साथ मित्रता !
शास्त्री जी विभिन्न विचारों में सामंजस्य निपुणता के बाद भी अल्प अवधि के कारण देश के अर्थ संकट व खाद्य संकट का प्रभावी हल न कर पा रहे थे ! परन्तु जनता में उनकी लोकप्रियता व सम्मान अत्यधिक था जिससे उन्होंने देश में हरित क्रांति लाकर खाली गोदामों को भरे भंडार में बदल दिया ! किन्तु यह देखने के लिए वो जीवित न रहे, पाकिस्तान से 22 दिवसीय युद्ध में, लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया "जय जवान जय किसान" देश के किसान को सैनिक समान बना कर देश की सुरक्षा के साथ अधिक अन्न उत्पादन पर बल दिया! हरित क्रांति व सफेद (दुग्ध) क्रांति[16] के सूत्र धार शास्त्री जी अक्तू.1964 में कैरा जिले में गए उससे प्रभावित होकर उन्होंने आनंद का देरी अनुभव से सरे देश को सीख दी तथा उनके प्रधानमंत्रित्व काल 1965 में नेशनल देरी डेवेलोपमेंट बोर्ड गठन हुआ ! 
समाजवादी होते हुए भी उन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था को किसी का पिछलग्गू नहीं बनाया[16]. अपने कार्य काल 1965[7] में उन्होंने भ्रमण किया रूसयुगोस्लावियाइंग्लैंडकनाडा व बर्मा
पाकिस्तान से युद्ध 
भारत पाकिस्तानी युद्ध 1965
पाकिस्तान ने आधे कच्छ, पर अपना अधिकार जताते अपनी सेनाएं अगस्त 1965 में भेज दी, which skirmished भारतीय टेंक की कच्छ की मुठभेढ़ पर लोक सभा में, शास्त्री जी का वक्तव्य[17]:
“ अपने सीमित संसाधनों के उपयोग में हमने सदा आर्थिक विकास योजना तथा परियोजनाओं को प्रमुखता दी है, अत: किसी भी चीज को सही परिपेक्ष्य में देखने वाला कोई भी समझ सकता है कि भारत की रूचि सीमा पर अशांति अथवा संघर्ष का वातावरण बनाने में नहीं हो सकती !... इन परिस्थितियों में सरकार का दायित्व बिलकुल स्पष्ट है और इसका निर्वहन पूर्णत: प्रभावी ढंग से किया जायेगा ...यदि आवश्यकता पड़ी तो हम गरीबी में रह लेंगे किन्तु देश कि स्वतंत्रता पर आँच नहीं आने देंगे!  ”
  ( It would, therefore, be obvious for anyone who is prepared to look at things objectively that India can have no possible interest in provoking border incidents or in building up an atmosphere of strife... In these circumstances, the duty of Government is quite clear and this duty will be discharged fully and effectively... We would prefer to live in poverty for as long as necessary but we shall not allow our freedom to be subverted.)
पाकिस्तान कि आक्रामकता का केंद्र है कश्मीर. जब सशस्त्र घुसपैठिये पाकिस्तान से जम्मू एवं कश्मीर राज्य में घुसने आरंभ हुए, शास्त्री जी ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट कर दिया कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा[18] अभी सित.1965 में ही पाक सैनिकों सहित सशस्त्र घुसपैठियों ने सीमा पार करते समय सब अपने अनुकूल समझा होगा, किन्तु ऐसा था नहीं और भारत ने भी युद्ध विराम रेखा (अब नियंत्रण रेखा) के पार अपनी सेना भेज दी है तथा युद्ध होने पर पाकिस्तान को लाहौर के पास अंतर राष्ट्रीय सीमा पर करने कि चेतावनी भी दे दी है! टेंक महा संग्राम हुआ पंजाब में , and while पाकिस्तानी सेनाओं को कहीं लाभ हुआ, भारतीय सेना ने भी कश्मीर का हाजी पीर का महत्त्व पूर्ण स्थान अधिकार में ले लिया है, तथा पाकिस्तानी शहर लाहौर पर सीधे प्रहार करते रहे! 
17 सित.1965, भारत पाक युद्ध के चलते भारत को एक पत्र  चीन से मिला. पत्र में, चीन ने भारतीय सेना पर उनकी सीमा में सैन्य उपकरण लगाने का आरोप लगाते, युद्ध की धमकी दी अथवा उसे हटाने को कहा जिस पर शास्त्री जी ने घोषणा की "चीन का आरोप मिथ्या है! यदि वह हम पर आक्रमण करेगा तो हम अपनी अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम हैं"[19]. चीन ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया किन्तु भारत पाक युद्ध में दोनों ने बहुत कुछ खोया है! .
भारत पाक युद्ध समाप्त 23 सित.  1965 को संयुक्त राष्ट्र-की युद्ध विराम घोषणा से हुआ. इस अवसर पर प्र.मं.शास्त्री जी ने कहा[17]:
“ दो देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष तो समाप्त हो गया है संयुक्त राष्ट्र- तथा सभी शांति चाहने वालों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है is to bring to an end the deeper conflict... यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? हमारे विचार से, इसका एक ही हल है शांतिपूर्ण सहा अस्तित्व! भारत इसी सिद्धांत पर खड़ा है; पूरे विश्व का नेतृत्व करता रहा है! उनकी आर्थिक व राजनैतिक विविधता तथा मतभेद कितने भी गंभीर हों, देशों में शांतिपूर्ण सहस्तित्व संभव है !  ” 
ताश कन्द का काण्ड 
युद्ध विराम के बाद, शास्त्री जी तथा  पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान वार्ता के लिए ताश कन्द (अखंडित रूस, वर्तमान उज्बेकिस्तान) अलेक्सेई कोस्य्गिन के बुलावे पर 10 जन.1966 को गए, ताश कन्द समझौते पर हस्ताक्षर किये! शास्त्री जी को संदेह जनक परिस्थितियों में मृतक बताते, अगले दिन/रात्रि के 1:32 बजे [7]  हृदयाघट का घोषित किया गया ! यह किसी सरकार के प्रमुख की सरकारी यात्रा पर विदेश में मृत्यु की अनहोनी घटना है[20]
शास्त्री जी की मृत्यु का रहस्य ?
शास्त्री जी की रहस्यमय मृत्यु पर उनकी विधवा पत्नी ललिता शास्त्री  कहती रही कि उनके पति को विष दिया गया है. कुछ उनके शव का नीला रंग, इसका प्रमाण बताते हैं.शास्त्री जी को विष देने के आरोपी रुसके रसोइये को बंदी भी बनाया गया किन्तु वो प्रमाण के अभाव में बच गया[21]
2009 में, जब अनुज धर, लेखक CIA's Eye on South Asia, RTI में  (Right to Information Act) प्रधान मंत्री कार्यालय से कहा, कि शास्त्री जी की मृत्यु का कारण सार्वजानिक किया जाये, विदेशों से सम्बन्ध बिगड़ने की बात कह कर टाल दिया गया देश में असंतोष फैलने व संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन भी बताया गया[21]
PMO ने इतना तो स्वीकार किया कि शास्त्री जी कि मृत्यु से सम्बंधित एक पत्र कार्यालय के पास है! सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि शव की रूस USSR में post-mortem examination जाँच नहीं की गई, किन्तु शास्त्री जी के वैयक्तिगत चिकित्सक  डा. र.न.चुघ ने जाँच कर रपट दी थी! किस प्रकार हर सच को छुपाने का मूल्य लगता है और सच का झूठ / झूठ का सच यहाँ सामान्य प्रक्रिया है कुछ भ हो सकता है[21]
स्मृतिचिन्ह 
आजीवन सदाशयता व विनम्रता के प्रतीक माने गए, शास्त्री जी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, व दिल्ली के "विजय घाट" उनका स्मृति चिन्ह बनाया गया ! अनेकों शिक्षण सस्थान, शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक संसथान National Academy of Administration (Mussorie) तथा शास्त्री इंडो -कनाडियन इंस्टिट्यूट अदि उनको समर्पित हैं[22]
देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

Friday, December 31, 2010

अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं

अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं

 "अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं; उमंग उत्साह, चाहे जितना दिखाएँ; चैत्र के नव रात्रे, जब जब भी आयें; घर घर सजाएँ, उमंग के दीपक जलाएं; आनंद से, ब्रह्माण्ड तक को महकाएं; विश्व में, भारत का गौरव बढाएं " अंग्रेजी का नव वर्ष 2011, व वर्ष के 365 दिन ही मंगलमय हों, भारत भ्रष्टाचार व आतंकवाद से मुक्त हो, हम अपने आदर्श व संस्कृति को पुनर्प्रतिष्ठित कर सकें ! इन्ही शुभकामनाओं के साथ, भवदीय.. तिलक संपादक युगदर्पण राष्ट्रीय साप्ताहिक हिंदी समाचार-पत्र. 09911111611.

Bangla... 

অংগ্রেজী কা নব বর্ষ, ভলে হী মনাএং

 "অংগ্রেজী কা নব বর্ষ, ভলে হী মনাএং; উমংগ উত্সাহ, চাহে জিতনা দিখাএঁ; চৈত্র কে নব রাত্রে, জব জব ভী আযেং; ঘর ঘর সজাএঁ, উমংগ কে দীপক জলাএং; আনংদ সে, ব্রহ্মাণ্ড তক কো মহকাএং; বিশ্ব মেং, ভারত কা গৌরব বঢাএং " অংগ্রেজী কা নব বর্ষ 2011, ব বর্ষ কে 365 দিন হী মংগলময হোং, ভারত ভ্রষ্টাচার ব আতংকবাদ সে মুক্ত হো, হম অপনে আদর্শ ব সংস্কৃতি কো পুনর্প্রতিষ্ঠিত কর সকেং ! ইন্হী শুভকামনাওং কে সাথ, ভবদীয.. তিলক সংপাদক যুগদর্পণ রাষ্ট্রীয সাপ্তাহিক হিংদী সমাচার-পত্র. 09911111611. 

Tamil... அஂக்ரேஜீ கா நவ வர்ஷ, பலே ஹீ மநாஏஂ
 "அஂக்ரேஜீ கா நவ வர்ஷ, பலே ஹீ மநாஏஂ; உமஂக உத்ஸாஹ, சாஹே ஜிதநா திகாஏஂ; சைத்ர கே நவ ராத்ரே, ஜப ஜப பீ ஆயேஂ; கர கர ஸஜாஏஂ, உமஂக கே தீபக ஜலாஏஂ; ஆநஂத ஸே, ப்ரஹ்மாண்ட தக கோ மஹகாஏஂ; விஸ்வ மேஂ, பாரத கா கௌரவ படாஏஂ " அஂக்ரேஜீ கா நவ வர்ஷ 2011, வ வர்ஷ கே 365 திந ஹீ மஂகலமய ஹோஂ, பாரத ப்ரஷ்டாசார வ ஆதஂகவாத ஸே முக்த ஹோ, ஹம அபநே ஆதர்ஸ வ ஸஂஸ்கர்தி கோ புநர்ப்ரதிஷ்டித கர ஸகேஂ ! இந்ஹீ ஸுபகாமநாஓஂ கே ஸாத, பவதீய.. திலக ஸஂபாதக யுகதர்பண ராஷ்ட்ரீய ஸாப்தாஹிக ஹிஂதீ ஸமாசார-பத்ர. 09911111611.
"One may celebrate even English New Year, with exaltation and excitement; Chaitra Nav Ratre whenever it comes; decorate house, enlighten with lamps of exaltation; enjoy, even enrich the universe with Happiness; Increase the India's pride in the world, English New Year 2011 and all the 365 days of the year are auspicious, May India be free of corruption and terrorism, we can ReEstablish Ideals, values and culture ! with these good wishes, Sincerely .. Tilak editor YugDarpan Hindi national weekly newspaper. 09,911,111,611.
"Angrezi ka nav varsh, bhale hi manayen; umang utsah, chahe jitna dikhayen; chaitr ke nav ratre, jab jab bhi ayen; ghar ghar sajayen, umang ke deepak jalayen; Anand se, brahmand tak ko mahkayen; Vishva mein, Bharat ka gaurav badayen." Angrezi ka nav varsh 2011, v varsh ke 365 din hi mangalmay hon, Bharat bhrashtachar v atankvad se mukt ho, ham apne adarsh v sanskrutiko punrpratishthit kar saken ! inhi shubhakamanaon ke sath, bhavdiya.. Tilak Sampadak Yug Darpan Rashtriya Saptahik Hindi Samachar-Patra. 09911111611.

पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

Thursday, December 23, 2010

पंडित महा मना मदनमोहन मालवीय

पंडित महा मना मदनमोहन मालवीय

असाधारण महापुरुष पंडित महा मना मदन मोहन मालवीय का जन्म भारत के उत्तरप्रदेश प्रान्त के प्रयाग में 25 दिसम्बर सन 1861 को एक साधारण परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम ब्रजनाथ और माता का नाम भूनादेवी था । चूँकि ये लोग मालवा के मूल निवासी थे अस्तु मालवीय कहलाए ।
मदन मोहन मालवीय की प्राथमिक शिक्षा प्रयाग के ही श्री धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला में हुई जहाँ सनातन धर्म की शिक्षा दी जाती थी । इसके बाद मालवीयजी ने 1879 में इलाहाबाद जिला स्कूल से एंट्रेंस की परीक्षा उत्तीर्ण की और म्योर सेंट्रल कालेज से एफ.ए. की । आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मदनमोहन को कभी-कभी फीस के भी लाले पड़ जाते थे । इस आर्थिक विपन्नता के कारण बी.ए. करने के बाद ही मालवीयजी ने एक सरकारी विद्यालय में 40 रुपए मासिक वेतन पर अध्यापकी शुरु कर दी ।
अध्यापकी के दौरान ही मालवीयजी के हृदय में समाज-सेवा की लालसा जग गई । समाज-सेवा में लगे होने के साथ ही साथ 1885 में ये कांग्रेस में शामिल हो गए । इनके जुझारुपन व्यक्तित्व और जोरदार भाषण से लोग प्रभावित होने लगे । समाज-सेवा और राजनीति के साथ ही साथ मालवीयजी हिन्दुस्तान पत्र का संपादन भी करने लगे । बाद में मालवीयजी ने प्रयाग से ही अभ्युदय नामक एक साप्ताहिक पत्र भी निकाला । पत्रकारिता के प्रभाव और महत्व को समझते हुए मालवीयजी ने अपने कुछ सहयोगियों की सहायता से 1909 में एक अंग्रेजी दैनिक-पत्र लीडर भी निकालना शुरु किया । इसी दौरान इन्होंने एल.एल.बी. भी कर ली और वकालत भी शुरु कर दी । वकालत के क्षेत्र में मालवीयजी की सबसे बड़ी सफलता चौरीचौरा कांड के अभियुक्तों को फाँसी से बचा लेने की थी ।
राष्ट्र की सेवा के साथ ही साथ नवयुवकों के चरित्र-निर्माण के लिए और भारतीय संस्कृति की जीवंतता को बनाए रखने के लिए मालवीयजी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की । विश्वविद्यालय के निर्माण हेतु धन जुटाने के लिए वे भारत के कोने-कोने में गए । अपने आप को भारत का भिखारी माननेवाले इस महर्षि की मेहनत रंग लाई और 4 फरवरी 1916 को वसंतपंचमी के दिन वाइसराय लार्ड हार्डिंग्ज के द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव रखी गई । आज भी यह विश्वविद्यालय शिक्षा का एक विख्यात केंद्र है और तभी से पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला रहा है ।
मालवीयजी देशप्रेम, सच्चाई और त्याग की प्रतिमूर्ति थे । एक मनीषी थे और थे माँ भारती के एक सच्चे सपूत । इस मनीषी को सदा दूसरों की चिंता सताती थी अस्तु दूसरों के विकास के लिए, लोगों के कष्टों को दूर करने के लिए ये सदा तत्पर रहते थे । इनका हृदय बड़ा कोमल और स्वच्छ था । दूसरे का कष्ट इनको व्यथित कर देता था । सन 1934 में दरभंगा में भूकम्प पीड़ितों की सेवा और सहायता इन्होंने जी-जान से की थी ।
कई लोग मदनमोहन की व्याख्या करते हुए कहते थे कि जिसे न मद हो न मोह, वह है मदनमोहन । इस मनीषी की महानता को नमन करते हुए महा, मना शब्द भी इनके नाम के आगे जुड़कर अपने आप के भाग्यशाली समझने लगे । गाँधीजी इन्हें नररत्न कहते थे और अपने को इनका पुजारी । माँ भारती का यह सच्चा सेवक और ज्ञान, सच्चाई का सूर्य 12 नवम्बर 1946 को सदा के लिए अस्त हो गया । 
madan mohan malaviya-जैसा कि महापुरुषों का लक्षण है पंडित मदन मोहन मालवीय को कभी भी किसी तरह  के पद या सम्मान का लालच नहीं रहा।
कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर से एक बार उन्हें पत्र मिला कि विश्वविद्यालय उन्हें डाक्टरेट की उपाधि से सम्मानित करना चाहते है। कृपया  इसके लिए अपनी स्वीकृति दें। यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेने से उनके नाम के आगे डाक्टर  लगता जो कि पंडित से ज्यादा सम्मान उन्हें दिलाता।
लेकिन पंडित मदन मोहन मालवीय ने  प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार करते हुए जवाब दिया कि पंडित की उपाधि उनके कुल  खानदान की विरासत है। इसे त्यागकर वे अपने पूर्वजों का अपमान करेंगे। इसलिए मैं डाक्टर की बजाय पंडित कहलाना ही अधिक पसंद करूंगा।”   

इसी तरह जब अंग्रेजों ने उनकी विद्वता से प्रभावित होकर उन्हें ‘सर’ की उपाधि देना चाहा तो उन्होंने  कहा, ”मेरे लिए पंडित की उपाधि ही सर्वोपरि उपाधि है। एक ब्राह्मण परिवार में जन्म देकर यह मुझे ईश्वर ने प्रदान की है। मैं इसे त्याग कर उसके बंदे की दी गई उपाधि लेना नहीं चाहूंगा।” 

इस महापुरुष, मनीषी, मंगलघट, महाधिवक्ता, महानायक, महासेवी, महादेशभक्त, महामहिम, महा मना मदनमोहन मालवीय को मेरा शत-शत नमन । 

देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं - देश की मिटटी -तिलक संपादक युगदर्पण तिलक संपादक युगदर्पण!

मनमोहनी मुखौटा व इच्छाशक्ति

युग दर्पण सम्पादकीय
 विगत 3 वर्षों से 2 जी व अन्य घोटाले हुए पर आंख बंद रखने व बचाव करनेवाले प्र.मं. डॉ. मनमोहन सिंह ने शुचिता का मुखौटा लगा ही लिया व बुराड़ी में अपने भाषण से हमें आभास दिला दिया कि भ्रष्टाचार अभी भी एक मुद्दा है और मनमोहन सिंह सरकार उसे समाप्त करने की इच्छुक है। कांग्रेस महाधिवेशन में प्रधानमंत्री ने सिद्धांतों की राजनीति करते हुए केवल भ्रष्टाचार की शंका पर त्यागपत्र देने की परम्परा बताई, यह जानकार खुशी हुई। यह भी आवाज़ आइ, हम विपक्ष की तरह नहीं है कि किसी राज्य में घोटाले पर घोटाले हों और मुख्यमंत्री पद पर बने रहें। जेपीसी की मांग पर एकजुट विपक्ष में दरार डालने के लिए प्रधानमंत्री ने लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने का दांव खेला। उन्होंने कहा कि`मैं साफतौर पर कहना चाहता हूं कि मेरे पास कुछ भी छिपाने को नहीं है।  प्रधानमंत्री पद को किसी भी तरह के संदेह से परे होना चाहिए। इसलिए पुरानी परम्परा न होते हुए भी मैं लोलेसमिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने को तैयार हूं। इस मनमोहनी मुखौटे ने तो मनमोह लिया किन्तु अब इसके पीछे छिपे वास्तविक रूप को भी देखें।'
  माना कि यहां सीधे सीधे प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं। किसी ने भी यह नहीं कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह ने भ्रष्टाचार के कृत्य किए हैं। जेपीसी की मांग 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर है। प्रश्न सीधा है, क्या मनमोहन सिंह सरकार पूरी ईमानदारी से इस घोटाले की जांच करवाने को तैयार है या नहीं? संसद भारत की सर्वोच्च जनता की अदालत है। सांसद इसीलिए भेजे जाते हैं कि जनता की आवाज को संसद में उठा सकें। जब संसद के बहुमत सदस्य चाहते हैं कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच जेपीसी करे तो सरकार को इसमें क्या आपत्ति है? हम प्रधानमंत्री जी से क्षमा चाहेंगे। अपने भाषण में उन्होंने प्रधानमंत्री पद की निष्ठा की महत्ता बताई, किन्तु प्रश्न निष्ठा का नहीं, नियत का है, इच्छाशक्ति का है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई की बातें कहना और ऐसा करने की इच्छाशक्ति दिखाने में अन्तर होता है।और यहाँ यह अन्तर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है। 
डॉ. मनमोहन सिंह के इस कथन से विपरीत कि मात्र संदेह होने पर उनके नेताओं ने पद त्याग दिया, वास्तविकता यह है कि ए. राजा से तब त्यागपत्र लिया गया जब इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह गया था। जब मीडिया और विपक्ष राजा के विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रहा था, तब कांग्रेसी देश को यह समझाने में लगे थे कि राजा को त्यागपत्र देने की आवश्यकता क्यों नहीं है? हम डॉ. सिंह को याद दिलाना चाहेंगे कि आपने स्वयं भी राजा का बचाव किया था। शशि थरूर के मामले में भी ऐसा ही हुआ था और जहां तक अशोक चव्हाण की बात है वह तो रंगे हाथ पकड़े गए थे। विवाद को ठंडे बस्ते में डालने के प्रयास में कांग्रेस ने चव्हाण को हटाया था, न कि देश का हित ध्यान में रखकर। 
  लोलेस (पीएसी) के पास सीमित अधिकार होते हैं। सामान्यत: कार्यपालिका से जुड़े सरकारी लोग संबंधित फाइलें ले जाकर समिति को यह बताते हैं कि उसमें क्या प्रक्रिया अपनाई गई किस-किस ने क्या लिखा, कैसे क्या निर्णय हुआ। यदि प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है और प्रधानमंत्री को भी संदेह से परे रखना चाहिए, तो हम याद करा दें आरोपी अपनी जांच का मंच स्वयं नहीं चुनता प्रधानमंत्री ने यह कहकर अपना मंच स्वयं चुना कि वह पीएसी के समक्ष प्रस्तुत होने को तैयार हैं। लोलेस केवल कैग की रिपोर्ट पर अनुच्छेदवार टिप्पणियां दे सकती है जबकि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन ही पूरी तरह से राजनीतिक मुद्दा है। क्या प्रधानमंत्री देश को यह बताना चाहेंगे कि एक दागी मंत्री को 3 वर्ष मंत्रालय में बने रहने की अनुमति कैसे मिल गई और आज तक उसके विरुद्ध कोई भी सीधी कार्रवाई नहीं हुई? सर्वो. न्याया. ने भी यह टिप्पणी की। । 
इच्छाशक्ति की बात करते है। यदि केंद्र सरकार अपनी चौतरफा आलोचना के बाद चेत गई है तो फिर देश को यह बताया जाए कि सर्वो. न्याया. की प्रतिकूल टिप्पणियों के बाद भी केंद्रीय सतर्पता आयुक्त के पद पर आसीन एक ऐसा व्यक्ति क्यों है जो न केवल पामोलीन आयात घोटाले में लिप्त होने का आरोपी है बल्कि अभियुक्त भी है? प्रश्न यह भी है कि मुसआ. (सीवीसी) के रूप में पीजे थॉमस की नियुक्ति सर्वो. न्याया. की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के तहत क्यों नहीं की गई? एक दागदार छवि वाले व्यक्ति को मुसआ. बनाकर प्रधानमंत्री यह दावा कैसे कर सकते है कि वह भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी है? यदि स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की निगरानी उच्चतम न्यायालय को करनी पड़ रही है तो क्या इसका एक अर्थ यह नहीं कि स्वयं शीर्ष अदालत भी यह मान रही है कि सीबीआई सरकार से प्रभावित हो सकती है? किसी राज्य में गलती का अनुसरण केंद्र कर रहा है तो गुज. व बिहार के विकास को आदर्श बनाया होता। । क्या सरकार ने स्वेच्छा से किसी भ्रष्ट तत्व के विरुद्ध कार्रवाई की, ऐसा कोई एक भी उदाहरण सरकार दे सकती है? 
बात इच्छाशक्ति की है। आज तक अफजल गुरु को फांसी क्यों नहीं दी गई? आतंकवाद को क्या यह सरकार रोकना चाहती है? लगता तो नहीं। वोट बैंक की चाह में देश की सुरक्षा से भी समझौता किया जा रहा है। इस सरकार का एक मात्र उद्देश्य किसी भी तरह से सत्ता में बने रहना है और जिससे उसके सत्ता कि नीव अस्थिर हो वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती तो गठबंधन के बहाने बन जाते हैं। 2जी स्पेक्ट्रम में भी यही प्राथमिकता है। सरकार अपने गठबंधन साथियों, विश्वस्त नौकरशाहों सहित सरकारी टुकड़ों पर पलते मीडिया के अपने उन पिट्ठुओं तथा मोटा चंदा देनेवाले उन उद्योगपतियों के पापों को ढकना चाहती है, जिनके साथ उसकी साठ गांठ हैं। । फिर भी प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैं भ्रष्टाचार का सख्त विरोधी हूं। क्या सच मुच ?
डॉ. मनमोहन सिंहदेश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !