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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

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Tuesday, April 20, 2010

हमने दो हिन्दू लड़कियों को 'लव जेहाद' से बचाया

अब बर्दाश्त से बाहर हो गया है... इसलिए पोस्ट से पहले इस सूचना को लिख रहे हैं, ताकि पढ़ने वाले जान लें कि इस्लाम के ये 'प्रचारक' किस तरह 'वेद-क़ुरआन' के नाम पर गंदा खेल रहे हैं...



सलीम जी! क्या यही 'मुसल्मानियत' है आपकी मंडली की...???सलीम जी! आप दुनिया को तो 'संदेश' देते फिर रहे हैं... क्या यही 'मुसल्मानियत' है आपकी मंडली की...???... एक फ़र्ज़ी  नाम से फ़र्ज़ी टिप्पणियां करो... आपकी एक पोस्ट में firdosh khan के नाम पर क्लिक करने पर 'वेद कुरआन' ब्लॉग खुलता है...इस तरह पीठ पर वार तो सिर्फ़ 'ग़द्दार' ही कर सकते हैं...

'लव जेहाद' की एक सच्ची कहानी...
सुरेश चिपलूनकर जी ने अपने एक लेख में 'लव जेहाद' का ज़िक्र किया है...
क़रीब तीन साल पहले हमने दो हिन्दू लड़कियों को 'लव जेहाद' से बचाया था... ये लड़कियां आज बहुत सुखी हैं... और इनके माता-पिता हमें बहुत स्नेह करते हैं...
बात तीन साल पुरानी है...

हमारे शहर के दो मुस्लिम लड़के हैं, दोनों भाई हैं... उन्होंने पड़ौस की ही दो ब्राह्मण बहनों से 'प्रेम' (वास्तव में जो प्रेम हो ही नहीं सकता) की पींगे बढ़ानी शुरू कर दीं... दोनों लड़के अनपढ़ हैं, जबकि लड़कियां कॉलेज में पढ़ रही थीं...
वो लड़कियों को शोपिंग कराते, उन्हें बाइक पर घुमाते... ब्राह्मण परिवार में वो लड़के दिन-दिनभर रहते...
एक बार उनमें से एक लड़के ने किसी पुलिस वाले से मारपीट कर ली, उसे हिरासत में ले लिया गया... उसका भाई मदद के लिए हमारे पास आया... हमने एसपी से बात करके मामले रफ़ा-दफ़ा करवा दिया... साथ ही हिदायत भी दी कि फिर कभी ऐसी हरकत की तो हमारे पास मत आना...

उन भाइयों में से बड़ा भाई नमाज़ का बहुत पाबन्द है... वो 'जमात' में भी जाता है... जबकि 'छोटा भाई' तो शायद साल-छह महीने में ही मस्जिद का मुंह देखता है... 'बड़े भाई' ने हमारे भाइयों को भी 'सबक़' सिखाना शुरू किया... हमारे छोटे भाई ने एक दिन इस बात का ज़िक्र हमसे किया... हमने कहा कि उन 'भाइयों' से दूर ही रहना... कहीं मिले तो 'बड़े भाई' कहना हमने दफ़्तर बुलाया है... इस बात के दो दिन बाद 'बड़ा भाई' हमारे दफ़्तर आया... हमने उससे बहुत सी बातें पूछीं... मसलन जमात , जमात की शिक्षाओं और फिर वही, धर्मांतरण, जन्नत-दोज़क़, ताकि हा उसे बातों में लगाकर वो सब पूछ सकें... जो हम जानना चाहते हैं... हम उनसे पूछा- उन लड़कियों का क्या क़िस्सा है... ???
पहले तो उसने टाल-मटोल की, मगर जब हमने मदद का दिलासा दिलाया तो वो बताने को राज़ी हो गया...
उसने बताया कि वो छोटी वाली लड़की से प्रेम करता है... और उसका छोटा भाई बड़ी लड़की से...
हमने कहा- वो तो 'हिन्दू' हैं और तुम मुसलमान...क्या तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे... ?
वो ख़ुश होकर बोला- क्यों नहीं आख़िर 'नेक' काम कर रहा हूं... इससे हमें सवाब मिलेगा...
हमने पूछा-नेक का...? वो कैसे...?
उसने कहा- वो लड़कियां काफ़िर हैं... हम उन्हें 'कलमा' पढ़ा लेंगे... इससे हमें दस हज का सवाब मिलेगा... और मरने के बाद जन्नत...जन्नत में 72 हूरें मिलेंगी, जन्नती शराब मिलेगी...
हमें पूछा- यह सब तुम्हें किसने सिखाया...?
वो कहने लगा- हमें जमात में यह सब बताया जाता है...
हमने कहा- एक बात बताओ... दस हज के सवाब के लिए दो लड़कियों की ज़िन्दगी बर्बाद करना क्या जायज़ है...?
वो हैरान होकर हमारी तरफ़ देखने लगा और बोला- जिंदगी बर्बाद क्यों होगी...?
हमने कहा- वो लड़कियां पढ़ी-लिखी हैं और ज़ाहिर है, क़ाबिल और पढ़े-लिखे लड़कों से शादी करेंगी तो ख़ुशहाल ज़िन्दगी बसर करेंगी, जो तुम्हारे साथ मुमकिन नहीं...
तुम लोग हिन्दू लड़कियों से शादी करके उन्हें (अपने लालच के लिए) मुसलमान तो बना लोगे, लेकिन क्या कभी सोचा है, उन मुस्लिम लड़कियों का क्या होगा, जिनसे तुम्हारी शादी होती... वो कहां जाएंगी...???
जन्नती शराब के लिए दो मासूम लड़कियों की ज़िन्दगी तबाह करने से क्या यह बेहतर नहीं है कि तुम शराब पी लो...???
जन्नत में 72 हूरों के साथ अय्याशी को क्या कहा जाएगा...??? पुण्य का फल...???
ख़ैर... हम जानते थे, यह लड़कों को बचपन से ही घुट्टी की तरह पिलाई जाती हैं, ऐसे लोग फिर कहां किसी की बात मानते हैं...
ऐसी मानसिकता के लोगों के करम में भी अय्याशी (दुनिया में चार-चार औरतों के साथ) और फल में भी अय्याशी (जन्नत में 72 हूरों के साथ) कूट-कूटकर भरी होती हैं...

हमने उसे विदा किया... बाद में हमने अपनी अम्मी से इस बारे में बात की... उन्होंने कहा कि लड़कियों की मां और और वो लड़कियां तुम्हें बहुत मानती हैं... उनसे बात कर लो... बहन-बेटियां सबकी सांझी होती हैं... (हमें अपनी अम्मी की यह बात बहुत अच्छी लगी...)
काश! सभी ऐसा ही सोच सकते...

अगले दिन इतवार था... हम लड़कियों के घर गए और उन्हें सभी बातें अच्छी तरह से समझा दीं... उनके सामने पूरी ख़ुशहाल ज़िन्दगी पड़ी है... ऐसे लड़कों के साथ क्यों ज़िन्दगी ख़राब कर रही हैं...

कुछ माह बाद पता चला कि चंडीगढ़ में उन लड़कियों की शादी हो गई और वे बहुत सुखी हैं... वो लड़कियां अपने मायके आई हुई हैं... कल घर भी आईं थीं... उन्होंने हमसे कहा... दीदी हम आपको अपना मार्गदर्शक मानती हैं... आप हमें न समझातीं तो आज पता नहीं हम कहां और किस हाल में होतीं...!!!

हमें उनसे मिलकर बहुत ख़ुशी हुई...
ईश्वर उन्हें हमेशा सुखी रखे... यही कामना है... 

जन्नत की हक़ीक़त क्या है...???

इस दुनिया में मर्दों के लिए चार औरतों का इंतज़ाम तो है ही, साथ ही जन्नत में भी 72 हूरें और पीने के लिए जन्नती शराब मिलेगी...यानि अय्याशी का पूरा इंतज़ाम...
जैसे जन्नत न हुई अय्याशी का अड्डा हो गया...
इस लेख में हमने सिर्फ़ उसी का ज़िक्र किया है... जो हो रहा है... और इसे 'कुतर्कों' से झुठलाया नहीं जा सकता...
ज़रूरी बात : कुछ 'मुस्लिम ब्लोगर भाई' हमारे ब्लॉग पर 'असभ्य' भाषा में टिप्पणियां लिखकर  अपने 'संस्कारों' का प्रदर्शन कर रहे हैं... ऐसे लोगों  से हमारा विन्रम निवेदन है कि वो यहां न आएं... यह 'सभ्य' लोगों के लिए है...
इस लेख को पढ़ कर भाव विभोर हो अश्रु धार प्रवाहित हो चली! भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो, साधू वेश में फिर आया रावण! संस्कृति में ही हमारे प्राण है! भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व!! फ़िरदौस ख़ान तुझे नमन, एक ऐसे व्यक्ति का जो आसानी से किसी को नमन नहीं करता  -तिलक
देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं !

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